कलाम आख़री हम समझ ना सकें,
कुछ ऐसी ही शुरुआत तुम कर दो…
वैसे तो क़ाबिल हम नही तुम्हारे,
नाम हमारे ही हमारी ज़िंदगानी तुम कर दो…
खुशी के रंगों से तो
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कलाम आख़री हम समझ ना सकें

कलाम आख़री हम समझ ना सकें,
कुछ ऐसी ही शुरुआत तुम कर दो…
वैसे तो क़ाबिल हम नही तुम्हारे,
नाम हमारे ही हमारी ज़िंदगानी तुम कर दो…
खुशी के रंगों से तो
ज़मीन-ओ-बंज़र ना खिला तू ग़ुल इश्क़ के,
ख़ाक-ए-मंज़र बस इसका निशां होगा…
रश्क़ में कैद है इस दिल का पंछी,
आफ़ताब ना अब इसका जहां होगा…
रौशनी मरमरी है नाकाफ़ी
ज़ाफरान-ए-क़ब्र देखा तो आँखों ने नूर छोड़ दिया,
अज़ाब-ए-क़ब्र सुना तो कानों ने लफ़्ज़ छोड़ दिया…
किस मुँह से कहें फ़ौलाद-ए-आदम हुए हम,
क़ज़ा
करते रहे तमन्ना दिल-ओ-जान से मोहोब्बत की,
और मुफ़्त में ही नफ़रतों के पहाड़ नसीब होते रहे…
मरते रहे लाख हर एक अदा पे उसकी,
और वो थे
देख साथ आने को मौत बेकरार है,
तुझपे ही मर मिटने को मौत बेकरार है…
तक़ल्लुफ़ ना कर हाथ थाम ले वक़्त का,
जान ले वो हाथ से फिलसलने को